आज कि प्रेरणा
नाप डालो शोक का विस्तार जितना है, तोल दो अवमानना का भार जितना है.. पर्वतों को ठेलकर अब साथ ले चलो.. दो दिखा कि धमनियों में ज्वार कितना है! है नहीं किसका हृदय अवसाद में डूबा... कौन है जिसपर समय का कोप न टूटा, अब उठा लो अंजलि में और पी जाओ, उगल रखा समय ने अंगार जितना है ! कर रहा विपद प्रमाणित, के हलक में प्राण हैं, और तेज साक्ष्य है कि रक्त में उफान है... विफलताएं कह रहीं के विजय अब भी दूर है, झेल जाओ वज्र सा प्रहार जितना है! है वही कायर कि जो, मरता मृतक के साथ है, शोक-संग्रह करके बढ़ना ही मनुज के हाथ है... एक पंथ साध कर बढ़ते रहो प्रवाह में, भूल जाओ कौन खाता खार कितना है ! जन्म है भेंट भी, जन्म ही दायित्व भी... जन्म ही है सेवा भाव, जन्म ही नेतृत्व भी, जन्म है अवसर, धरा को निहाल कर डालो.. दो दिखा कि हृदय का आभार कितना है श्रृंखलाएं जोड़ दो, तोड़ डालो रुढि - जाल, पोंछ डालो लांछनों को, धवल कर दो कुल-कपाल.. शीघ्र सुच्य कर डालो संकटो को आज ही, कर लिया तुमने ग्रहण, प्रभार जितना है ! तम के सागर में जलाओ, नि...