📝 The Poem: 🔥" विराट षड्यंत्र"🔥 TERROR in the form of LOVE राष्ट्र की एकता- अखंडता और हर बेटी की सुरक्षा में समर्पित...!🇮🇳 यहाँ दोस्ती से शुरुआत होती है कुछ झूठी पर मीठी बात होती है नज़दीकिया बढ़ाने के लिये साथमे गुज़री कई रात होती है दिमाग एकतरफ गज़ब खेलता है दूजी ओर दिल कायल होता है चलता है शिकारी चाल प्यार की किसी मासूम का यौवन फिर घायल होता है छलिया बड़ा चालाक है चिकनी चुपड़ी बातों में उसको बस तुमसे प्यार जताना होता है करके साथ खाना पीना ड्रग्स से सिर्फ सुलाना होता है भगवान पर जिन्हें विश्वास नही माटीके पुतलों पर वे यकीन करते है शराब और नादानी में डूबकर अज्ञात कैमरे की आड़ में फिर राते हसीन करते है एक गलती बस छोटी सी उनको भारी पड़ती है आधुनिकता के जोश में वो होश पर अपने जब थप्पड़ जड़ती है क्यूँ भूल जाते है नादान जिस्म की चाह बस प्रेम की पवित्रता का आधार नही जो नोचेगा तुम्हें विवाह से पहले क्या बसेगा फिर तुम्हारा संसार कहीं? दवाएं नशीली खिलाकर अस्मत से उनकी लिपटा जाता है तिल तिल तड़पाने हेतु निजता को उनकी चलचित्रों में समेटा जाता है दुःख उन मासूमों का कितना भारी है एक नही प्यार...
चाणक्य की नीति हूँ , आर्यभट्ट का आविष्कार हूँ मैं । महावीर की तपस्या हूँ , बुद्ध का अवतार हूँ मैं। अजी हाँ! बिहार हूँ मैं।। सीता की भूमि हूँ , विद्यापति का संसार हूँ मैं। जनक की नगरी हूँ, माँ गंगा का श्रंगार हूँ मैं। अजी हाँ! बिहार हूँ मैं।। चंद्रगुप्त का साहस हूँ , अशोक की तलवार हूँ मैं। बिंदुसार का शासन हूँ , मगध का आकार हूँ मैं। अजी हाँ! बिहार हूँ मैं।। दिनकर की कविता हूँ, रेणु का सार हूँ मैं। नालंदा का ज्ञान हूँ, पर्वत मन्धार हूँ मैं। अजी हाँ! बिहार हूँ मैं। वाल्मिकी की रामायण हूँ, मिथिला का संस्कार हूँ मैं पाणिनी का व्याकरण हूँ , ज्ञान का भण्डार हूँ मैं। अजी हाँ! बिहार हूँ मैं। राजेन्द्र का सपना हूँ, गांधी की हुंकार हूँ मैं। गोविंद सिंह का तेज हूँ , कुंवर सिंह की ललकार हूँ मैं। अजी हाँ! बिहार हूँ मैं।। प्यार कि निशानी हुंँ, हांँ मैं दशरथ मांझी हुँ ! अजी हाँ ! बिहार हुँ मैं ...!! ...
क्या तुम जानते हो पुरुष से भिन्न एक स्त्री का एकांत? घर, प्रेम और जाति से अलग एक स्त्री को उसकी अपनी ज़मीन के बारे में बता सकते हो तुम? बता सकते हो सदियों से अपना घर तलाशती एक बेचैन स्त्री को उसके घर का पता? क्या तुम जानते हो अपनी कल्पना में किस तरह एक ही समय में स्वयं को स्थापित और निर्वासित करती है एक स्त्री? सपनों में भागती एक स्त्री का पीछा करते कभी देखा है तुमने उसे रिश्तों के कुरुक्षेत्र में अपने आपसे तड़ते? तन के भूगोल से परे एक स्त्री के मन की गाँठें खोल कर कभी पढ़ा है तुमने उसके भीतर का खौलता इतिहास? पढ़ा है कभी उसकी चुप्पी की दहलीज़ पर बैठ शब्दों की प्रतीक्षा में उसके चेहरे को? उसके अंदर वंशबीज बाते क्या तुमने कभी महसूसा है उसकी फैलती जड़ों को अपने भीतर? क्या तुम जानते हो एक स्त्री के समस्त रिश्ते का व्याकरण? बता सकते हो तुम एक स्त्री को स्त्री-दृष्टि से देखते उसके स्त्रीत्व की परिभाषा? अगर नहीं! तो फिर जानते क्या हो तुम रसोई और बिस्तर के गणित से परे एक स्त्री के बारे में...? - रौशन राज (कविता - क्या तुम जानते हो) Thank you 😊
Good line's
ReplyDeleteI love this quote
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