The Poem : धराशायी दैहिक गुलाम ( राष्ट्र की सेवा में समर्पित )

    The Poem:धराशायी दैहिक गुलाम

         राष्ट्र की सेवा में समर्पित.....।🇮🇳

🔘 प्रथम चरण(श्रद्धांजलि):-
जो वासनाओं में नष्ट हुए

क्यों खेला उस पलभर की खुशी से
पीछे जिसके भारी नुकसान था
तुम क्यों नही समझे
उसी राह पर  तो शमशान था...

यौवन के जोश में
भोगों में लिपटे और
क्षणिक विराम बन गए
समाज से बहिष्कृत
दैहिक गुलाम बन गए

खुद की नज़रों में गिरे
निजता को सरेआम कर गए
वासनाओं में बुझाया यौवन का दिया
औऱ उजियारी सुबह को
ढलती  शाम  कर  गए

सुख समझा था जिसे
कभी वो सुख था ही नही
मूर्खता करी हमने
प्रेम समझा जिस माया को
वासना में प्रेम का मुख
कभी था  ही नही

एड्स और हर्पीज़ के शिकार
चमड़ी के दाम कर गए
माँ बाप की परवरिश को
जाने अनजाने बदनाम कर गए

चेहरों पर चमकता सा नूर था
मन मे काम का फितूर था
क्यों तुम इज्जत अपनी
ऐसे नीलाम कर गए
मासूम सी ज़िंदगी को
क्यों तमाम कर गए

भुजाएं कड़क थी, तन में तड़प थी
तब भी कैसा इंतज़ाम कर गए
थोड़ा भी सोचा नही तुमने
देखो अपना, क्या अंजाम कर गए

🔴द्वितीय चरण:- अलार्म सन्देश भारतीय युवा पीढ़ी और विद्यार्थियों के लिये...

भारत का वो वीर युवा
विवेकानन्द जिसका आह्वान करे
सूरा सुन्दरी में जब सुख खोजे
कैसे सन्कल्प तब स्वाभिमान भरे

जन्म दिया योनि से माँ ने हमको
और स्तनों से अमृत पान किया
भूला क्यों है जग इस सत्य को
विषयो में ही क्यों बस
इन अंगों का गुणगान किया

है सत्य नही  वो प्यारे
जो बस आँखों से  तुझे दिखता है
रूह पाक ही है अमृत तेरा
चंद कौड़ियों  की खातिर तो
यहाँ नवयौवन भी बिकता है

मरकर भी जो मरी नही
उन रूहों की यह पुकारे है
ज़िन्दा है पर जी रही
उन बेबस
बहनो की यह चित्कारे है👈

अपने हाथो से खुद को तबाह किया
सारे यौवन को बस यूं लुटा दिया
क्यों तुम ज़िंदगी को
उजड़ा मुकाम कर रहे
आखिर क्यों
"धराशायी दैहिक गुलाम" बन रहे

छोटी सी है ये ज़िंदगी
दारू और सिगरेट के धुएं में
क्यों प्रभात से शाम कर रहे
आखिर किसकी वजह से
जन्म को अपने
ड्रग्स की ओवरडोज़ के नाम कर रहे

हँसते खेलते मासूम चेहरे
क्यों कब्रिस्तान हो गए
मासूम रिश्तो को ठुकराकर
क्यों अजनबी-सुनसान हो गए

वो नही रहे थे और
हम भी नही रहेंगे
नादानियों में वे तो अपनी
मासूमियत का कत्ल-ए-आम कर गए
इन्द्रियों में डूबने वाले
जल्दी प्रस्थान कर गए

सम्वेदनाएं जिनकी सुन्न हुई
क्या तुम उनसे सम्बंध बनाओगे
चमड़ी के पीछे फिरने वालो
अंततः खुद को ही भरमाओगे

🔴तीसरा चरण: पर्दे के पीछे छिपे मार्मिक सत्य की झलक

स्वस्थ नही रहते हम
और न हाल हमारे मस्त है
हमारे जीवन का सूर्य तो
हो चुका अब अस्त है

निजता भंग होती हमारी
तुमने उसका लाभ उठाया है
राइट to पर्सनल लिबर्टी की आड़ में
हमें क्यों दैहिक दास बनाया है👈

मिला धोखा प्यार में या फिर
यौवन को अपनो ने खरोंचा है
कौन खुशी से मरता है दलदल में,
परवरिश के अभाव में ही सोचा है


कभी किडनैप किया हमको,
घरवालों से निर्दयीओ ने भी छीना है
हँसना है तुम्हे रिझाने को बस
वरना घुट घुट कर हरदिन जीना है

मत दो गालियां
और न करो कटाक्ष हम पर
हम भी है वैसे जैसे आपकी ही
बहन या बेटी है
एक है घर पर और
एक आपके सम्मुख लेटी है

हम उत्तेजना की जननी नही
बल्कि हालातों की मारी है
विनती करे पवित्रता की
मुश्किल में हम बेचारी है

निजता खोई हमने, और
सामाजिक सम्मान गवाया हैं
था गौरव जो माँ बाप को हमपर
वो अभिमान गवाया है
(Sad END✅

🔘चतुर्थ चरण:
अब हमें क्या करना है

भाइयों सुधरेगा जब यौवन हमारा
बहने भी तब
वासनाओं की बलि से बच जाएंगी
न कहलायेगा कोई भेड़िया तब
और शक्ति के अंश को भी उपमा
बकरी की न दी जाएगी

तृष्णा काम की मिटाए नही मिटती
लेकिन यह तरुणाई मिट जाती है
समय रहते तुम्हें सम्भलना होगा,
वरना बातें  सारी पिट जाती है...

पीकर दूध माँ के पवित्र आँचल से
जान हमारे भीतर आयी है
शायद भूल गया है बात
यह युवा हमारा
इसीलिये नज़रे उसकी हर
पराए आँचल पर भरमाई है

📝
पर तुम न अब धोखा खाना
सत्य की सही समझ को
प्रयास संग अमल में लाना
करके हर नारी का आदर
माता का अपनी मान बढ़ाना
बहनों का अपनी सम्मान बढ़ाना...

                 धन्यवाद🌷


🆘शिक्षा: यह कविता सम्पूर्ण मानव समुदाय के हित से जुड़ी है। विश्व के कल्याण से और युवाओं के उत्थान से जुड़ी है
इन पंक्तियों में महिला सशक्तिकरण का मार्ग भी है और प्यारे बच्चों के सुनहरे भविष्य का सार भी है👈

यह एक संवाद भी है, क्योंकि हर शब्द आपको खुद से बातें करने के लिये प्रेरित करेगा। और उन समस्याओ के हल भी देगा, जिन्हें आप लंबे समय से खोज रहे है...
यह कविता बहुत संवेदनशील होने के साथ साथ वर्तमान भारत के लिये प्रासंगिक भी है,
देश को इसकीं ज़रूरत है

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     🏐🏐🏐            By @raushan_raaz

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