ब्लैक डे

 शाम के 6:54 हो रहे हैं । ट्रेन नंबर 12841 (कोरोमंडल एक्सप्रेस) अपने नियत गति से पटरी पर दौड़ रही है ।


एक परिवार के कुछ सदस्य रात्रि भोजन की तैयारी में लगे हैं, वहीं दूसरी तरफ कुछ नन्हे मुन्ने बच्चे ट्रेन की खिड़की पर खड़े हो कर बाहर डूबते हुए सूर्य की ओर निहार रहे हैं और बाहर से आ रही ठंडी हवा का आनंद ले रहे हैं ।

ट्रेन के गलियारे में समान बेचने वाले वेंडर्स की आवाज और उनकी आवा जाहि लगातार जारी है । बगल वाले विंडो सीट पर दो नवयुवक बैठे बैठे बात कर रहे हैं, अपना रोष प्रकट कर रहे हैं की कैसे इस वर्ष SSC के कठिन  पेपर ने उनके साथ नाइंसाफी की और उनका  अफसर बनने का सपना चूर चूर हो गया ।

बगल वाली बर्थ पर एक बूढ़े दंपति बैठे हैं । आपस में कह रहे हैं की अब आयु हो चली है की पुजा पाठ, तीरथ व्रत और  भक्ति में मन लगाया जाए । बुढ़ापे में कम से कम कर लिया जाय ।

ट्रेन के दरवाजे पर एक अधेड़ उम्र के सज्जन फोन पर बात करते हुए खड़े हैं । एक हाथ से अपना एक कान दबा कर बाहर से आ रहे शोर को नजर अंदाज करने का प्रयास करते हुए कह रहे हैं "तू जानता नहीं मुझे, एक बार मुझे वहां पहुंचने दे तेरी खाल उधड़वा दूंगा" ।

अचानक, अगले ही क्षण एक भीषण आवाज आई । जैसे बिजली गरजी हो, या फिर उससे भी भयंकर आवाज।
लोगों की आंख खुलते ही भयंकर तबाही का दृश्य आंखों के सामने था।  लोगों के क्षत विक्षत अंग, दर्द से कराहने की चीख, बचाओ बचाओ की पुकार ।

जीवन में बस इतनी ही निश्चितता है। हिंदी में कहें तो बस इतनी ही certainity है । अर्थात शून्य । हम सब परम सत्य (मृत्यु) से बस इतने ही दूर हैं । माया के वश में हर जगह (नौकरी, प्रेम, विवाह)निश्चितता खोजते रहते हैं । अपना मानसिक संतुलन खो देते हैं, अंधी दौड़ दौड़ते रहते है जीवन पर्यंत, परंतु यह भूल जाते हैं की यह जीवन ही अनिश्चित है ।

घटना में अपने प्राण गवाने वाले सभी लोगों को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि ।

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