हमारा क्या कसूर था......
📝The Poem:-
🔥हमारा क्या कसूर था...?🔥विरोध करना अधिकार है तुम्हारा
उसका प्रयोग करना तुम्हें ज़रूर था
पर हमें क्यों नग्न, निर्वस्त्र किया तुमने
इसमें हमारा क्या कसूर था...?
हक चाहते है सब अपना अपना
तो पाने के उसे और कई तरीके है
वहशी मानसिकता का लेकिन
यह कैसा फितूर था?
क्या बस
अबला स्त्री होना ही कसूर था...?🤔
क्यों पिसती है हम नारी
हर जंग और युद्ध की आड़ में
पश्चात चीर हरण के
करते है मीठी बातें सब बाद में...
नग्न तुमने किया किसी स्त्री को
या खुद को ही कतई नँगा किया है
कैसी है यह विकृत मानसिकता
शांतिप्रिय समाज में जिसने दंगा किया है
यह प्रश्न सारे समाज पर आया है
इसका उत्तर भी हमें अब खोजना होगा
बात जाति, पंथ, या किसी क्षेत्र की नही
वतन की हर सुता की रक्षा हेतु सोचना होगा...
भारत माँ की बेटियों का सम्मान छीनकर
तुम कितना सुकून पा लोगे
किसी घर के दीप बुझाकर
तुम कितने चिराग जला लोगे...?🔥
यह हम सभी को सोचना होगा
इन प्रश्नों का हल खोजना होगा...👈
किरदार बदल जाते है विद्रोह और युद्ध के
तौर तरीका लेकिन उनका बदलता नही
दुर्बल का ही करते बस शोषण
बलवान पर किसी का पैंतरा चलता नही...
खोलो इतिहास युद्धों का
देखो किसने कितना कुछ खोया है...
गहराई से भीतर तुम झाँको
महिलाओं का ह्रदय कितना रोया है?
मांग का सिंधुर लुटाया हमने
और औलादों को भी अपनी खोया है
और जो कुछ बच गयी इस दुःख से
अस्मत छीन जाने से दिल उनका
🔥चीख चीख कर रोया है...🔥
दर्द असहनीय होता हमको,
और ह्रदय विदारक पीड़ा ने भी नोचा है
नारी का मान मर्दन करने वाले विचारों
बीतेगी क्या मन पर उसके,
तुमने कभी यह सोचा है...?
नग्न संतानों को जो अपने पल्लू से ढकती
ममता के उस आंचल को तुमनें छीन लिया
करके वस्त्र हरण उन माताओं का
आत्मगौरव उनका क्यों बीन लिया..?
है दम्भ यह उभरते यौवन का
या फिर भीड़ की दरिंदगी है..?
इतना भी नीचे कोई गिरता है क्या
नही दिखती जब कोई ज़िन्दगी है..
कौन टिका है यहाँ
और कौन टिक पाएगा
धूल धूसरित होना निश्चित है
स्त्री का जो मान गिराएगा...
न बच सका दम्भी दशानन
न ही दुर्योधन को जयकार मिली
जो करता मानभंग किसी नारी का
उसको
तीनों लोकों में ही दुत्कार मिली...🔥
तीनों लोकों में ही दुत्कार मिली...🔥
धन्यवाद
माध्यम: @raushan raaz..
📝शिक्षा:- प्यारे युवा साथियों हम उसी महान भारत की संतान है, जहाँ gentleman उनके कपड़ो से नही बल्कि उनके चरित्र से कहलाते है। लेकिन जब चरित्र का स्तर नीचे गिरने लग जाए तो समाज में मानवता को शर्मसार करने वाले घटनाएं भी नज़र आती है।
किसी भी व्यक्ति की गरिमा और उसके आत्मसम्मान की रक्षा करना प्रत्येक व्यक्ति का एक मूल मानवीय कर्तव्य है। जिसकी पालना हर व्यक्ति द्वारा समाज ,देश और विश्व के प्रत्येक व्यक्ति के हित में किया जाना चाहिये। हमारा संविधान भी व्यक्ति की गरिमा की सुरक्षा हेतु समर्पित है.........!🇮🇳
So ओनली one शेयर For Dignity Of Individuals...👍
🏐🏐🏐
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