गणेश जी और नागराज वासुकी का युद्ध
गणेश जी और नागराज वासुकी का युद्ध
एक बार गणेश भगवान पराशर ऋषि के आश्रम में मुनि पुत्रों के साथ खेल रहे थे, तभी वहाँ पर पाताल लोक से कुछ नाग कन्याएं आयी, उन्होंने भगवान शिव के पुत्र बाल गणेश को देखते ही उन्हें अपने साथ अतिथि सत्कार के लिए पाताल लोक पधारने का आग्रह पूर्वक निवेदन किया।
गणेश भगवान उस प्रेम भाव से किये गए निवेदन को ना नहीं कह पाए और उनके साथ पाताल लोक के लिए निकल पड़े। वहाँ पहुँचते ही पाताल लोक वासियों ने उनका स्वागत बड़े प्रेम और आदर भाव से किया।
अतिथि सत्कार के कुछ समय पश्चात जब वह सैर पर निकले तब रास्ते में उनकी मुलाकात पाताल लोक अर्थात नाग लोक के राजा वासुकी से हो गई। बालक गणेश जी ने सम्राट वासुकी को विनम्रता से अभिवादन किया, लेकिन वासुकी बातो-बातों में गणेश भगवान का उपहास कर रहे थे, उनके स्वरुप का मजाक उडा रहे थे।
यह बात गणेश जी को बिलकुल भी अच्छी नहीं लगी, इसलिए उन्होंने राजा वासुकी के साथ युद्ध करके उन्हें चारों खाने चित्त कर दिया। युद्ध के अंत में गणेश जी ने वासुकी के फन पर पैर रख दिया, साथ ही उनका निचे गिरा हुआ राजमुकुट उठाकर स्वयं पहन लिया।
राजा वासुकी और गणपति महाराज के लड़ाई की खबर जब वासुकी के भाई महान शेषनाग तक पहुँच गई, तब वह बड़ी तेजी से अपने भाई को मदद करने के लिए दौड़े चले आए।
युद्ध स्थान पर पहुंचते ही शेषनाग गर्जना करते हुए बोले, कौन है वह जिसने मेरे भाई की ऐसी हालत की है, गर्जना की ललकार सुनते ही एकदंत गणेश भगवान शेषनाग के सामने प्रकट हुए, और अपने सामने पार्वती नंदन पराक्रमी श्री गणेश को देखते ही शेषनाग जी ने उनका अभिवादन किया। उन्होंने तत्काल ही गणेश जी को पाताल लोक के राज सिंहासन पर बिठाकर राजा घोषित कर दिया। यह थी गणेश जी के पाताल लोक के राजा बनने की कहानी।
जय श्री गणेश🙏🏻❣️
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