The Poem: 16 श्रृंगार हुँ मैं....
📝The Poem: 16 श्रृंगार हूँ मैं...
तलवारो की धार हूँ मैं
हाँ 16 श्रृंगार हूँ मैं
विषयी वासना से छूना नही मुझको
वरना तेरी चिता का "अंगार" हूँ मैं....
जहाँ भी भी वंदन है मेरा
वहां खुशियों का त्योंहार हूँ मैं
वरना अस्तित्व मिटा दूँ पापी का
ऐसी अत्यंत "खूँखार" हूँ मैं...
अर्धांगिनी रूप में तुझे पूर्णता देने वाले
उस शुभ मिलन का "इंतज़ार" हूँ मैं
चरित्र का सामर्थ्य ही मुझे पाता है
सदा उसको समर्पित सच्चा "प्यार" हूँ मैं...
सिर्फ चंद्रमा की शीतलता नही
दहकते सूरज की धधकती बौछार हूँ मैं
ममता करुणा और त्याग समर्पण क्या है
इन सबका ही तो "सार" हूँ मैं...
आकाश से भी अधिक ऊंची और
महासागर से भी अधिक विस्तार हूँ मैं
बलात्कारी और कुटिल भोगी भाते नही मुझको
उन नीच दुष्टों का "संहार" हूँ मैं...
हाँ सिंह पर सवार हूँ मैं
हवाओ से भी तीव्र रफ्तार हूँ मैं
जब प्यार और सम्मान से मुझे जीतोगे
तभी तुम्हारे लिये खुशियों की भरमार हूँ मैं...
माँ बेटी बहन और भाभी रूप में
हर घर मे अनेक "प्रकार" हूँ मैं
मूल में हूँ शक्ति का विराट अंश ही
अपनी कोख में समाती नया संसार हूँ मैं...
मां बाप का अभिमान हूँ
और कल्पना का अथाह विस्तार हूँ मैं
अनुसूया का व्रत भी हूँ और
अहिल्या रूप में महिमा अपार हूँ मैं...
सावित्री और शबरी सा तप हूँ और
मीरा सी भक्ती का असीम भंडार हूँ मैं
स्वयम हूँ मैं शक्ति सम्पन्न सिंहनी
नही गीदड़ और कुत्तों का शिकार हूँ मैं...
हाँ सहती नही अत्याचार हूँ मैं
21 वी सदी में उज्ज्वल क्रांति का आधार हूँ मैं
मातृत्व से भरी माँ के दूध की ठंडी फुहार हूँ मैं
ए विश्व वंदन कर नारी का
तुझ पर बहुत बड़ा मौन "उपकार" मैं...☑️
घर की लक्ष्मी रूप में
मनोकामना पूर्ति का दरबार हूँ मैं
मेरा ह्रदय विदीर्ण कर अगर श्राप लिया
तो तेरी अंतिम सांस तक दुःख का हाहाकार हूँ मैं...
गृहस्थ में तुझे पत्नी का सुख देने वाली
प्रेम की मीठी मीठी पुकार हूँ मैं
धन धान्य और वैभव से तुझे सजाने वाली
सप्ताह के 7 दिनों में मंगलमयी शुक्रवार हूँ मैं...
प्रेमिका बन तेरा ह्रदय जीतने वाली
सिर्फ तुझे समर्पित "कजरे की धार" हूँ मैं
विवाह के वादे कर मेरा यौवन लूटने वाले
तुझे छिन्न भिन्न करने वाली "यलगार" हूँ मैं...
मैं स्वयं हूँ महाशक्ति
शक्तिमान पुरुष ही मुझे भाते है
जो इन्द्रिय दुर्बलताओं से जूझ रहे
शोषण कर वे नारी को बड़ा रुलाते है,
अतः सिर्फ सहिष्णुता ही कर्तव्य नही मेरा
बल्कि आत्मरक्षा का शाश्वत अधिकार हूँ मैं
यहाँ असम्भव कुछ नही मेरे लिए
विजयश्री की अनन्त जयकार हूँ मैं...
विजयश्री की अनन्त जयकार हूँ मैं...
🔥हाँ 16 श्रृंगार हूँ मैं...🔥
धन्यवाद😊
माध्यम: @raushan raaz
📝शिक्षा:-
प्यारे युवा साथियों
यह कविता नारी के सम्मान और उसके आत्मगौरव से जुड़ी है। 16 श्रृंगार को नारी के सौंदर्य ,सुख समृद्धि , संयम और सौभाग्य के सुंदर संकेत रूप में यहाँ प्रकट किया गया है।
इस कविता की हर एक पंक्ति का उद्देश्य भारत देश की प्रत्येक बेटी को उसके भीतर छिपी असीम सामर्थ्य से अवगत कराना है, तथा हर शब्द इसी बात पर जोर देता है कि नारी अर्थात शक्ति...
जब भी कोई बहन इस कविता पर गम्भीरता से दृष्टि डालेगी, उसके बाद से ही अबला शब्द उसके जीवन के शब्दकोष से सदा के लिये मिट जाएगा
साथ ही इस कविता के माध्यम से देश के प्रत्येक माता पिता से यह विनम्र निवेदन है कि वे बेटियों के प्रति भी अपना कर्तव्य अच्छे से निभाए। बाल्यकाल से अपनी बेटियों को शारीरिक , मानसिक और आद्यात्मिक रूप से सशक्त करे।
क्यूँकि जब संकट के समय आप अपनी बेटियों के साथ उपस्थित नही होंगे तब भी आपके द्वारा दिया गया "शारीरिक प्रशिक्षण और भक्ति का बल" कभी भी उनका अहित या अमंगल नही होने देगा,
अतः इस बात का प्रारम्भ से ही विशेष ध्यान रखे।
साथ ही यह कविता
प्रत्येक महिला को उसके कठिन वक़्त से बाहर आने में सदा सहायक सिद्ध होगी।
जीवन मे जब भी आप स्वयम को निराश हताश या कमज़ोर महसूस करे तब इस कविता के हर एक शब्द की गहराई को महसूस करने का प्रयास ही आपको आगे बढ़ने का मार्ग अवश्य दिखायेगा।
अतः यह रचना सिर्फ भारत ही नही बल्कि विश्व की प्रत्येक बेटी तक अवश्य पहुंचनी चाहिये।
इसलिये सिर्फ बहनों को यह Poem ज़रूर शेयर करें
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