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बिहार मतलब ❣️ हमारा

 चाणक्य की नीति हूँ ,  आर्यभट्ट का आविष्कार हूँ मैं ।  महावीर की तपस्या हूँ ,  बुद्ध का अवतार हूँ मैं।  अजी हाँ! बिहार हूँ मैं।।  सीता की भूमि हूँ ,  विद्यापति का संसार हूँ मैं।  जनक की नगरी हूँ,  माँ गंगा का श्रंगार हूँ मैं।  अजी हाँ! बिहार हूँ मैं।।  चंद्रगुप्त का साहस हूँ ,  अशोक की तलवार हूँ मैं।  बिंदुसार का शासन हूँ ,  मगध का आकार हूँ मैं।  अजी हाँ! बिहार हूँ मैं।।  दिनकर की कविता हूँ,  रेणु का सार हूँ मैं।  नालंदा का ज्ञान हूँ,  पर्वत मन्धार हूँ मैं।  अजी हाँ! बिहार हूँ मैं।  वाल्मिकी की रामायण हूँ,  मिथिला का संस्कार हूँ मैं  पाणिनी का व्याकरण हूँ ,  ज्ञान का भण्डार हूँ मैं।  अजी हाँ! बिहार हूँ मैं।  राजेन्द्र का सपना हूँ,  गांधी की हुंकार हूँ मैं।  गोविंद सिंह का तेज हूँ ,  कुंवर सिंह की ललकार हूँ मैं।  अजी हाँ! बिहार हूँ मैं।।  प्यार कि निशानी हुंँ, हांँ मैं दशरथ मांझी हुँ ! अजी हाँ ! बिहार हुँ मैं ...!!      ...

Poem: क्या तुम जानते हो ?

 क्या तुम जानते हो पुरुष से भिन्न एक स्त्री का एकांत? घर, प्रेम और जाति से अलग एक स्त्री को उसकी अपनी ज़मीन के बारे में बता सकते हो तुम? बता सकते हो सदियों से अपना घर तलाशती एक बेचैन स्त्री को उसके घर का पता? क्या तुम जानते हो अपनी कल्पना में किस तरह एक ही समय में स्वयं को स्थापित और निर्वासित करती है एक स्त्री? सपनों में भागती एक स्त्री का पीछा करते कभी देखा है तुमने उसे रिश्तों के कुरुक्षेत्र में अपने आपसे तड़ते? तन के भूगोल से परे एक स्त्री के मन की गाँठें खोल कर कभी पढ़ा है तुमने उसके भीतर का खौलता इतिहास? पढ़ा है कभी उसकी चुप्पी की दहलीज़ पर बैठ शब्दों की प्रतीक्षा में उसके चेहरे को? उसके अंदर वंशबीज बाते क्या तुमने कभी महसूसा है उसकी फैलती जड़ों को अपने भीतर? क्या तुम जानते हो एक स्त्री के समस्त रिश्ते का व्याकरण? बता सकते हो तुम एक स्त्री को स्त्री-दृष्टि से देखते उसके स्त्रीत्व की परिभाषा? अगर नहीं! तो फिर जानते क्या हो तुम रसोई और बिस्तर के गणित से परे एक स्त्री के बारे में...? - रौशन राज  (कविता - क्या तुम जानते हो) Thank you 😊 

मेरे हमसफ़र

 सुनो.... हमसफ़र नहीं हो तुम फिर भी कहीं न कहीं सफर कर रहे हो तुम मेरे साथ हमेशा ।   कभी बर्फीली पहाड़ियों पर, कभी आसमान की बुलंदियों पर, कभी मेरे सामने बैठे हो..... तो कभी दूर खड़े मुस्करा रहे हो ।  कभी दुनिया की भीड़ में , कभी रात की तनहाई में.....  कभी मेरी यादों में, कभी मेरे ख्यालों में । सुनो.... मेरे साथ न होकर भी हर वक्त मेरे ज़हन में हो तुम मेरे हमसफ़र बनकर ...!!             ✍️ @raushan_raaz

The Poem: 16 श्रृंगार हुँ मैं....

 📝The Poem: 16 श्रृंगार हूँ मैं... तलवारो की धार हूँ मैं हाँ 16 श्रृंगार हूँ मैं विषयी वासना से छूना नही मुझको वरना तेरी चिता का "अंगार" हूँ मैं.... जहाँ भी भी वंदन है मेरा  वहां खुशियों का त्योंहार हूँ मैं वरना अस्तित्व मिटा दूँ पापी का ऐसी अत्यंत "खूँखार" हूँ मैं... अर्धांगिनी रूप में तुझे पूर्णता देने वाले  उस शुभ मिलन का "इंतज़ार" हूँ मैं चरित्र का सामर्थ्य ही मुझे पाता है सदा उसको समर्पित सच्चा "प्यार" हूँ मैं... सिर्फ चंद्रमा की शीतलता नही दहकते सूरज की धधकती बौछार हूँ मैं ममता  करुणा और त्याग समर्पण क्या है इन सबका  ही तो "सार" हूँ मैं... आकाश से भी अधिक ऊंची और  महासागर से भी अधिक विस्तार हूँ मैं बलात्कारी और कुटिल भोगी भाते नही मुझको उन नीच दुष्टों का "संहार" हूँ मैं... हाँ सिंह पर सवार हूँ मैं हवाओ से भी तीव्र रफ्तार हूँ मैं जब प्यार और सम्मान से मुझे जीतोगे तभी तुम्हारे लिये खुशियों की भरमार हूँ मैं... माँ बेटी बहन और भाभी रूप में हर घर मे अनेक "प्रकार" हूँ मैं मूल में हूँ शक्ति का विराट अंश ही अपनी कोख मे...

चीजों में कुछ चीजें ✍️

 चीज़ों में कुछ चीज़ें  बातों में कुछ बातें वो होंगी  जिन्हें कभी देख नहीं पाओगे  इक्कीसवीं सदी में  ढूँढ़ते रह जाओगे  बच्चों में बचपन  जवानों में यौवन  शीशों में दरपन  जीवन में सावन  गाँव में अखाड़ा  शहर में सिंघाड़ा  टेबल की जगह पहाड़ा  और पाजामे में नाड़ा  ढूँढ़ते रह जाओगे  आँखों में पानी  दादी की कहानी  प्यार के दो पल  नल-नल में जल  संतों की बानी  कर्ण जैसा दानी  घर में मेहमान  मनुष्यता का सम्मान  पड़ोस की पहचान  रसिकों के कान  ब्रज का फाग  आग में आग  तराजू पे बट्टा  और लड़कियों का दुपट्टा  ढूँढ़ते रह जाओगे  भरत-सा भाई  लक्ष्मण-सा अनुयायी  चूड़ी-भरी कलाई  शादी में शहनाई  बुराई की बुराई  सच में सच्चाई  मंच पर कविताई  ग़रीब को खोली  आँगन में रंगोली  परोपकारी बंदे  और अर्थी को कंधे  ढूँढ़ते रह जाओगे  अध्यापक, जो सचमुच पढ़ाए  अफ़सर, जो रिश्वत न खाए  बुद्धिजीवी, जो राह दि...

मैंने तो चलना सिख लिया

 मैंने तो अब चलना सीख लिया ❤️✨ मैंने खुद से मिलना सीख लिया  प्यार भरी  बाते करना शुरू किया  यही तो प्रमाण है की मैंने तो अब चलना सीख लिया चोट खाकर दुःख तो  अब भी होता है तमाशा करने के लिये  दिल अब न रोता है मैंने आंसू पीना सीख लिया हां यही सच है मैंने तो अब चलना सीख लिया✨ लक्ष्य से भटकने का  मलाल तो होता है मायूस होता है दिल  ये हाल भी होता है पर खुद की तकलीफें सहना  सीख लिया हा यह सच है मैने तो अब चलना सीख लिया✨ निराशा आती तो है पर उसे रुकना होता है आशा के सूरज को  फिर उगना होता है कुछ ऐसे ही अल्फाज़ो में दर्द को दवा बनाना सीख लिया हा ये सच है, मैंने तो अब चलना सीख लिया❤️✨ ज़िद्दी हूँ न ,ज़िद पवित्रता की कैसे छोड़ सकता हूँ दलदल में भी कमल का सपना कैसे तोड़ सकता हूँ पर थोड़ा धीरज रखना भी  सीख लिया हा बाबा अब  मैंने तो चलना सीख लिया❤️✨ नही अब गिरकर हताश होता हूँ,, उठकर फिर नया प्रयास करता हूँ अब डर को हराना सीख लिया यही तो सच है मैंने तो अब चलना सीख लिया✅ रूठता हूँ मगर न नाराज़ होता हूँ, करता हूँ बादे और खुद का हमराज़ होता हूँ अब मैंने ...

आज कि प्रेरणा

 नाप डालो शोक का विस्तार जितना है,  तोल दो अवमानना का भार जितना है.. पर्वतों को ठेलकर अब साथ ले चलो.. दो दिखा कि धमनियों में ज्वार कितना है! है नहीं किसका हृदय अवसाद में डूबा... कौन है जिसपर समय का कोप न टूटा, अब उठा लो अंजलि में और पी जाओ,  उगल रखा समय ने अंगार जितना है ! कर रहा विपद प्रमाणित, के हलक में प्राण हैं,  और तेज साक्ष्य है कि रक्त में उफान है...  विफलताएं कह रहीं के विजय अब भी दूर है,  झेल जाओ वज्र सा प्रहार जितना है! है वही कायर कि जो, मरता मृतक के साथ है,  शोक-संग्रह करके बढ़ना ही मनुज के हाथ है...  एक पंथ साध कर बढ़ते रहो प्रवाह में,  भूल जाओ कौन खाता खार कितना है ! जन्म है भेंट भी, जन्म ही दायित्व भी...  जन्म ही है सेवा भाव, जन्म ही नेतृत्व भी,  जन्म है अवसर, धरा को निहाल कर डालो..  दो दिखा कि हृदय का आभार कितना है श्रृंखलाएं जोड़ दो, तोड़ डालो रुढि - जाल,  पोंछ डालो लांछनों को, धवल कर दो कुल-कपाल..  शीघ्र सुच्य कर डालो संकटो को आज ही,  कर लिया तुमने ग्रहण, प्रभार जितना है ! तम के सागर में जलाओ, नि...