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मेरे हमसफ़र

 सुनो.... हमसफ़र नहीं हो तुम फिर भी कहीं न कहीं सफर कर रहे हो तुम मेरे साथ हमेशा ।   कभी बर्फीली पहाड़ियों पर, कभी आसमान की बुलंदियों पर, कभी मेरे सामने बैठे हो..... तो कभी दूर खड़े मुस्करा रहे हो ।  कभी दुनिया की भीड़ में , कभी रात की तनहाई में.....  कभी मेरी यादों में, कभी मेरे ख्यालों में । सुनो.... मेरे साथ न होकर भी हर वक्त मेरे ज़हन में हो तुम मेरे हमसफ़र बनकर ...!!             ✍️ @raushan_raaz

The Poem: 16 श्रृंगार हुँ मैं....

 📝The Poem: 16 श्रृंगार हूँ मैं... तलवारो की धार हूँ मैं हाँ 16 श्रृंगार हूँ मैं विषयी वासना से छूना नही मुझको वरना तेरी चिता का "अंगार" हूँ मैं.... जहाँ भी भी वंदन है मेरा  वहां खुशियों का त्योंहार हूँ मैं वरना अस्तित्व मिटा दूँ पापी का ऐसी अत्यंत "खूँखार" हूँ मैं... अर्धांगिनी रूप में तुझे पूर्णता देने वाले  उस शुभ मिलन का "इंतज़ार" हूँ मैं चरित्र का सामर्थ्य ही मुझे पाता है सदा उसको समर्पित सच्चा "प्यार" हूँ मैं... सिर्फ चंद्रमा की शीतलता नही दहकते सूरज की धधकती बौछार हूँ मैं ममता  करुणा और त्याग समर्पण क्या है इन सबका  ही तो "सार" हूँ मैं... आकाश से भी अधिक ऊंची और  महासागर से भी अधिक विस्तार हूँ मैं बलात्कारी और कुटिल भोगी भाते नही मुझको उन नीच दुष्टों का "संहार" हूँ मैं... हाँ सिंह पर सवार हूँ मैं हवाओ से भी तीव्र रफ्तार हूँ मैं जब प्यार और सम्मान से मुझे जीतोगे तभी तुम्हारे लिये खुशियों की भरमार हूँ मैं... माँ बेटी बहन और भाभी रूप में हर घर मे अनेक "प्रकार" हूँ मैं मूल में हूँ शक्ति का विराट अंश ही अपनी कोख मे...