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Showing posts from July, 2023

मैं कभी झूक नहीं सकता 💓

 📝 The Poem: मैं कभी झुक नही सकता♥️💫 विराट लक्ष्य धारण कर, चला हूँ जीवन में इसलिये मैं रुक नही सकता असफलताओं की चोट खाकर भी मैं झुक नही सकता... प्रयास जब होकर नाकाम बिखरते है तो अंग अंग तड़क तड़क जाता है चूक रह गयी कहाँ पुरूषार्थ में इस प्रश्न से  रोष भड़क जाता है.. इन जटिल और दुष्कर पलों में भी मैं रुक नही सकता विश्व कल्याण ही साध्य है मेरा अतः कभी झुक नही सकता... ह्रदय की प्रचंड ज्वाला से लेकर अग्नि अपने हौंसलों की पुनः मशाल जलाता हु निराशा, हताशा,को करके भस्म स्वयम को महाविकराल बनाता हूँ... क्यों डरता है  फिर तू इन मुश्किल घड़ियों में बनाएं रख संयम इन टूटी कड़ियों में.. वो नही  मैं जो ठोकर खाकर मर जाऊँगा नीलकंठ का अंश हूँ यह विष पीकर भी, जी जाऊंगा...✅ औकात नही इन हालातों की जो ह्रदय की धधकती अग्नि मुझमें शांत करें उन हुंकारों का मूर्त होना निश्चित है जिनका गुंजन "कृतान्त" करें... देवताओं का सूर्य सा ओज हूँ मैं खुद में ही खुद की खोज हूँ मैं आत्मविश्वास अनन्त है मुझमें स्वयम से कहता रोज़ रोज़ हूँ मैं... परिणाम  से आसक्ति नही रखता न ही नाकामी को सिर चढ़ने देता हूँ ...

योद्धा है तू तूझे लड़ना पड़ेगा

 📝 The Poem: 🔥 योद्धा है तू तुझे लड़ना पड़ेगा... 🔥 शूल कंटक से हालात कहूँ या कहूँ मैं बाधाओं के तीखे नश्तर अपने विजयपथ के मध्य से इन्हें चुनना पड़ेगा हाँ योद्धा है तू तुझे लड़ना पड़ेगा... जटिल विषम सी परिस्थितियों में भी धरकर धीरज को पीड़ा का गरल पान तुम्हें पीना पड़ेगा हाँ योद्धा है तू तुझे लड़ना पड़ेगा... तंज मिलेंगे तुमको और ताने  भी हाज़िरी में होंगे मौन व्रत रखकर तब तुम्हें सब सहना पड़ेगा हाँ योद्धा हूँ तू तुझे लड़ना पड़ेगा... मिलेगी नई चुनौतियां तुमको नैतिक दुविधाओं से भी जब "दो चार "तुम्हें होना पड़ेगा हाँ योद्धा है तू तुझे लड़ना पड़ेगा... संकट खड़ा होगा जब भावनाओं और कर्तव्य की राह में तब मोह के रिश्तो को पीछे तुझे छोड़ना पड़ेगा हाँ योद्धा है तू तुझे लड़ना पड़ेगा... कसौटियां फिर आएंगी तुम्हें परखने को मजबूत हौंसला भीतर तुमको तब बहुत रखना पड़ेगा हाँ योद्धा है तू तुझे लड़ना पड़ेगा... विश्वविजय कर सकने वाले इन पानी के बुलबुलों से क्यों घबराता है आस्था की पतवार थामकर तुम्हें तो जल प्रलय से भी निकलना पड़ेगा हाँ योद्धा हूँ तू तुझे तो लड़ना पड़ेगा....🔥 तुझे तो लड़ना पड़ेगा....🔥   ...

भारतीय माता - पिता

 📝 The Poem: भारतीय माता-पिता♥️ ✨ शुरुआत  कहाँ से करूँ इस कविता की समझ नही पाता हूँ हमारा आरम्भ ही इन्ही से है चलो यही से बात बढ़ाता हूँ... शब्द हल्के पड़ेंगे मेरे अब रुतबा इनका बड़ा भारी है ये  वो है, जिनके आशिष ने लाखो जिंदगियां संवारी  है... खुद रो लेते है अकेले में ये पर हमें तो हरपल हंसाया है होने  से  जिनके सबकुछ अपना लगता है ऐसा तो बस, सिर्फ माँ बाप का साया है... खून पसीने से पाला  है हमको और कतरा कतरा प्यार से सींचा है त्याग और बलिदान कितना ये करते है पुष्पों का अपने जैसे सदाबहार बगीचा है... माँ किसी की है झाड़ू करती, तो कोई गैरो के बर्तन धोती है औलाद के खातिर वो तो मुश्किल हालातों में सिसक  सिसक कर रोती है... जगती है बड़ा जल्दी कुछ तो और कुछ दिन भर न सोती है खाना बनाने से फुर्सत मिल जाये तो बच्चों के सभी कपड़े भी वही धोती है... खासी जुकाम जब हो जाये, तो काढ़ा बनाकर के वो पिलाती है प्यारे दुलारो का मन उदास हो जब लोरी गाकर अपनी गोद मे सुलाती है सिर पर  जब मां हाथ फेरती है हमारे तो सच मे कितना अच्छा लगता है स्वर्ग देखा नही कभी पर हमें त...

सुनो मेरे प्यारे भारतीय जवानों

 📝 The Poem: जाबांज़ भारतीय सैनिक...! 🇮🇳 सुनो मेरे प्यारे भारतीय जवानों ... गाथा सैनिकों के बलिदान की अब मै इत्मीनान से गाता हूँ तो करते है आरम्भ वहाँ से फौजी जब माँ से कहता कि माँ भारती की सेवा में मैया अब मैं जाता हूँ... सीमाएं राष्ट्र की सुरक्षित करनी है मुझकों और आतंकवाद से भी वतन बचाना है तेरी गोद मुझें याद बहुत आती है पर माँ कर्तव्य निभाने हेतु त्याग दिया ममता का यह अपार खजाना है... पोंछकर आँसू माँ की आँखों से छूकर चरणों को और लगाकर सीने से वो निकलता है उसी वतन की सेवा में जो बना है वीरों के खून पसीने से... जाते हुए देखता है अपनी पाक मुहब्बत को भी जो आज उसकी हर जन्म की साथी पत्नी है क्यूँ रोती हो तुम हे प्राणप्रिया यह माटी तो हम सबकी अपनी है... मुस्कुराकर ही तुम मुझे विदा करो यूँ न मायूस होकर कभी जुदा करो कोई साधारण स्त्री नही तुम हमनवा हो वीर सिपाही  की यह ध्यान भी हरपल सदा करो... सुनाकर देशप्रेम की ओजस्वी बातें वह योद्धा माथे को उसके चूमता है कहता है उससे कि तुम रखना खयाल अपना वरना चिंता में तुम्हारी यह मन घूमता है... लेकर माँ और पत्नी से विदा जब  वो थोड़ा आगे ब...

हमारा क्या कसूर था......

 📝 The Poem:- 🔥हमारा क्या कसूर था...?🔥 विरोध करना अधिकार है तुम्हारा उसका प्रयोग करना तुम्हें ज़रूर था पर हमें क्यों नग्न, निर्वस्त्र किया तुमने इसमें हमारा क्या कसूर था...? हक चाहते है सब अपना अपना तो पाने के उसे और कई तरीके है वहशी मानसिकता का  लेकिन यह कैसा फितूर था? क्या बस अबला स्त्री होना ही कसूर था...? 🤔 क्यों पिसती है हम नारी हर जंग और युद्ध की आड़ में पश्चात चीर हरण के करते है मीठी बातें सब बाद में... नग्न तुमने किया किसी स्त्री को या खुद को ही कतई नँगा किया है कैसी है यह  विकृत मानसिकता शांतिप्रिय समाज में जिसने दंगा किया है यह प्रश्न सारे समाज पर आया है इसका उत्तर भी हमें अब  खोजना होगा बात जाति, पंथ, या किसी क्षेत्र की नही वतन की हर सुता की रक्षा हेतु सोचना होगा... भारत माँ की बेटियों का सम्मान छीनकर तुम कितना सुकून पा लोगे किसी घर के दीप बुझाकर तुम कितने चिराग  जला लोगे ...?🔥 यह हम सभी को सोचना होगा इन प्रश्नों का हल खोजना होगा...👈 किरदार बदल जाते है विद्रोह और युद्ध के तौर तरीका लेकिन उनका बदलता नही दुर्बल का ही करते बस शोषण बलवान पर किसी का...